पशु तस्करी का काला खेल: बेजुबानों का दर्द, तस्करों का जाल: सूरजपुर में पुलिस पर भरोसा क्यों टूटा ?आम जनता में तस्करी को लेकर आक्रोश, सामाजिक संगठन व हिन्दू संगठन करेगी पुलिस का कार्य, जल्द बैठक कर बनाएंगे टीम
The dark game of animal smuggling: Pain of mute animals, the trap of smugglers: Why did the trust in the police break in Surajpur? Public outrage over smuggling, social organizations and Hindu organizations will do the work of the police, will soon hold a meeting and form a team

सूरजपुर कौशलेन्द्र यादव । छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के प्रेमनगर और रामानुजनगर क्षेत्र में पशु तस्करी का काला कारोबार न केवल मवेशियों की जिंदगी छीन रहा है, बल्कि ग्रामीणों की आस्था और आजीविका पर भी गहरी चोट पहुंचा रहा है। रात के अंधेरे में, घने जंगलों के रास्तों से, तस्कर बेरहमी से गायों, बैलों और भैंसों को ट्रकों में ठूंसकर मध्य प्रदेश के कटनी और अन्य बूचड़खानों की ओर ले जा रहे हैं। सबसे चौंकाने वाली बात? इस संगठित अपराध को कथित तौर पर स्थानीय पुलिस का संरक्षण प्राप्त है, जिसने ग्रामीणों के बीच आक्रोश और अविश्वास को जन्म दिया है।
प्रेमनगर के जंगलों में हर रात एक खामोश त्रासदी घट रही है। नवापारा कला के राजकछार और बकिरमा, प्रेमनगर नगर पंचायत बरईहाडांड सहित अन्य जगहों के कुछ सफेदपोश लोग शामिल हैं। जो खुले आम रात के अंधेरे में मवेशियों को ट्रकों में लोड कर तस्करी कर रहे हैं। ये मवेशी, जो ग्रामीणों की आजीविका और सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक हैं, पहले चोरी किए जाते हैं या सस्ते दामों पर खरीदे जाते हैं। फिर कोरिया और कोरबा के रास्तों से इन्हें मध्य प्रदेश के बूचड़खानों तक पहुंचाया जाता है। तस्करों की क्रूरता का आलम यह है कि मवेशियों को छोटे-छोटे ट्रकों में ठूंसकर, बिना पानी-खाने के, सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कराई जाती है, जहां उनकी चीखें केवल जंगल की सन्नाटे में गूंजती हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि इस काले कारोबार को पुलिस की मिलीभगत के बिना चलाना असंभव है। नवापारा कला में तस्करी की गतिविधियां खुलेआम हो रही हैं, और स्थानीय पुलिस को इसकी पूरी जानकारी होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही। एक ग्रामीण ने गुस्से में कहा, “हमने कई बार पुलिस को तस्करी की सूचना दी, लेकिन हर बार हमें खाली हाथ लौटना पड़ता है। रात में तस्करों के ट्रक बिना चेकिंग के निकल जाते हैं। क्या पुलिस को कुछ दिखता नहीं?” आरोप है कि तस्करों से मोटा कमीशन लेकर कुछ पुलिसकर्मी आंखें मूंद लेते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि तस्करों के वाहन बिना किसी रुकावट के सीमावर्ती क्षेत्रों से गुजरते हैं, जो पुलिस की नाकेबंदी और गश्त की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है। क्या यह महज लापरवाही है, या फिर एक गहरी सांठगांठ का परिणाम? यह सवाल हर ग्रामीण के मन में कौंध रहा है।
मवेशी सूरजपुर के ग्रामीणों के लिए केवल पशु नहीं, बल्कि उनकी आजीविका और आस्था का आधार हैं। गायों का धार्मिक महत्व और बैलों का खेती में योगदान इस क्षेत्र की संस्कृति और अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। तस्करी के इस धंधे ने न केवल ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति को कमजोर किया है, बल्कि उनकी भावनाओं को भी गहरी ठेस पहुंचाई है। एक बुजुर्ग किसान ने रुंधे गले से कहा, “हमारी गायें हमारी मां समान हैं। इन्हें चुराकर बूचड़खाने भेजना हमारे लिए अपमान है।” तस्करी के कारण कई किसान अपनी आजीविका खो चुके हैं, और उनकी आस्था पर बार-बार प्रहार हो रहा है।
पशु तस्करी अब छोटे-मोटे अपराध तक सीमित नहीं रही; यह एक संगठित नेटवर्क बन चुका है, जिसमें लाखों रुपये का लेन-देन हर महीने हो रहा है। तस्करों का जाल सूरजपुर से कोरिया, कोरबा और मध्य प्रदेश तक फैला है। सूत्रों के मुताबिक, प्रेमनगर के सीमावर्ती क्षेत्रों से मवेशियों को कोठी खर्रा (कोरबा) और फिर मध्य प्रदेश ले जाया जा रहा है। इस नेटवर्क में शामिल लोग इतने ताकतवर हैं कि वे प्रशासन और पुलिस को आसानी से मैनेज कर लेते हैं। यह सवाल उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर चल रहा यह धंधा बिना स्थानीय प्रशासन की जानकारी और सहमति के कैसे संभव है?
छत्तीसगढ़ में पशु तस्करी के खिलाफ सख्त कानून मौजूद हैं, लेकिन इनका पालन न के बराबर हो रहा है। ग्रामीणों ने कई बार पुलिस और जिला प्रशासन को लिखित और मौखिक शिकायतें दीं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने गुस्से में कहा, “कानून तो किताबों में हैं, लेकिन धरातल पर लागू कौन करेगा? जब पुलिस ही तस्करों के साथ खड़ी है, तो हम न्याय की उम्मीद किससे करें?” जिला प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारियों की चुप्पी ने ग्रामीणों के गुस्से को और भड़का दिया है।
प्रेमनगर और आसपास के गांवों में अब इस तस्करी के खिलाफ आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। कई सामाजिक संगठन इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की तैयारी में हैं। ग्रामीणों की मांग है कि तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, दोषी पुलिसकर्मियों को बेनकाब किया जाए और इस धंधे पर पूरी तरह रोक लगे। एक युवा कार्यकर्ता ने चेतावनी दी, “अगर प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो हम सड़कों पर उतरेंगे। हमारे मवेशियों की रक्षा हमारी जिम्मेदारी है।”
पुलिस की भूमिका इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा संदेह के घेरे में है। अगर तस्करी की सूचनाएं पुलिस को मिल रही हैं, तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या कमीशन का लालच पुलिस को इस काले कारोबार का मूक समर्थक बना रहा है? ग्रामीणों का कहना है कि तस्करों के ट्रक बिना किसी चेकिंग के सीमावर्ती क्षेत्रों से गुजरते हैं, जो पुलिस की निगरानी व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि एक गहरी सांठगांठ का संकेत है, जिसकी जांच जरूरी है।
सूरजपुर के जंगलों में हर रात मवेशियों की चीखें गूंज रही हैं, लेकिन इन बेजुबानों की पुकार सुनने वाला कोई नहीं। यह सिर्फ पशु तस्करी की कहानी नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, लालच और सिस्टम की विफलता की दास्तान है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन और पुलिस इस काले कारोबार पर लगाम लगाएंगे? क्या ग्रामीणों की आस्था और आजीविका की रक्षा होगी? या फिर यह गोरखधंधा यूं ही बेखौफ चलता रहेगा? ग्रामीणों का एक ही सवाल है: जब रक्षक ही भक्षक बन जाए, तो बेजुबानों का भविष्य कौन बचाएगा?