बच्चा गोद लेने वाली माताओं का ‘चाइल्ड एडॉप्शन लीव पाना अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Getting child adoption leave is a fundamental right of mothers under Article 21: Chhattisgarh High Court

बिलासपुर:छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि बच्चों को गोद लेने वाली महिला कर्मचारी भी चाइल्ड केयर/गोद लेने की छुट्टी/मातृत्व अवकाश की हकदार हैं, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक मां का मौलिक अधिकार है कि वह अपने नवजात शिशु को मातृत्वपूर्ण देखभाल और स्नेह प्रदान कर सके, चाहे मातृत्व किस भी प्रकार से प्राप्त हुआ हो। जस्टिस विभु दत्ता गुरु ने स्पष्ट किया कि जैविक और गोद लेने वाली/सरोगेट माताओं के बीच मातृत्व लाभों को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा, “प्राकृतिक, जैविक, सरोगेट या गोद लेने वाली सभी माताओं को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और मातृत्व का मौलिक अधिकार है। सरोगेसी या गोद लेने की प्रक्रिया से जन्मे बच्चों को जीवन, देखभाल, सुरक्षा, प्रेम, स्नेह और विकास का अधिकार है। अतः निश्चित रूप से ऐसी माताएं इस उद्देश्य के लिए मातृत्व अवकाश प्राप्त करने की अधिकारी हैं।” मामले की पृष्ठभूमि: याचिकाकर्ता रायपुर स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) में सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने 20 नवंबर, 2023 को अपने पति के साथ एक दो दिन की बच्ची को गोद लिया। इसके बाद उन्होंने उसी दिन से 180 दिन की चाइल्ड एडॉप्शन लीव के लिए आवेदन किया।

हालांकि 18 दिसंबर, 2023 को संस्थान ने यह कहते हुए छुट्टी देने से इनकार कर दिया कि उनके HR नीति में चाइल्ड एडॉप्शन लीव का प्रावधान नहीं है। उन्होंने केवल 60 दिन का कम्यूटेड लीव मंजूर किया, यह कहते हुए कि केवल एक वर्ष से कम आयु के बच्चे को गोद लेने पर ही यह लागू होता है। याचिकाकर्ता ने बार-बार 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम के तहत 180 दिन की छुट्टी की मांग की, क्योंकि संस्थान की नीति में यह स्पष्ट है कि जब किसी विषय में नीति मौन हो तो भारत सरकार के नियमों का पालन किया जाए।
जब उनके आग्रहों का कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने राज्य महिला आयोग से संपर्क किया, जिसने 180 दिन की गोद लेने की छुट्टी और 60 दिन की कम्यूटेड लीव की अनुशंसा की। संस्थान ने महिला आयोग के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार की, लेकिन महिला अधिकारी को कानूनन उपाय अपनाने की छूट दी, जिसके बाद यह रिट याचिका दायर की गई। अनुच्छेद 19 और 21 गैर-राज्य संस्थाओं पर भी लागू: कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिका एक संवैधानिक अधिकार से संबंधित है और इसे नकारने से महिला की कार्यक्षमता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन होता है। सुप्रीम कोर्ट के Kaushal Kishor बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (2023) निर्णय का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19 और 21 के अधिकार गैर-राज्य संस्थाओं के विरुद्ध भी लागू होते हैं।

गोद लेने वाली मां के लिए चाइल्ड केयर लीव का अधिकार: कोर्ट ने संस्थान की HR नीति का विश्लेषण करते हुए कहा कि यदि सेवा शर्तों से जुड़ा कोई विषय मैनुअल में शामिल नहीं है तो भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित नियमों का पालन किया जाना चाहिए। 1972 के नियमों के अनुसार (नियम 43-B(1)), महिला सरकारी कर्मचारी जो दो से कम जीवित बच्चों की मां है, को यदि वह एक वर्ष से कम आयु के बच्चे को गोद लेती है, तो 180 दिन की चाइल्ड एडॉप्शन लीव दी जा सकती है।

कोर्ट ने कहा, “जब HR नीति चाइल्ड एडॉप्शन लीव पर मौन है और स्वयं की नीति के अनुसार संस्थान को केंद्र सरकार के नियमों को अपनाना चाहिए, तो स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता को 180 दिन की छुट्टी दी जानी चाहिए।” संविधान के अनुच्छेद 38, 39, 42 और 43 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि गोद लेने वाली माताएं भी जैविक माताओं की तरह गहरा स्नेह रखती हैं। उन्हें भी समान मातृत्व अधिकार मिलने चाहिए। कोर्ट ने जोर देते हुए कहा, “महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार है, जिसे अनुच्छेद 14, 15, 21 और 19(1)(g) द्वारा संरक्षित किया गया। यदि चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान नहीं होगा, तो महिलाएं कार्यबल छोड़ने के लिए मजबूर हो सकती हैं। यह महिला कर्मचारियों का स्वाभाविक और मौलिक अधिकार है, जिसे तकनीकी आधारों पर नकारा नहीं जा सकता। मातृत्व के प्रति जो देखभाल भारतीय संस्कृति में निहित है, वही कार्यस्थल पर भी लागू होनी चाहिए।” मातृत्व के तरीके के आधार पर भेदभाव नहीं: जस्टिस गुरु ने यह स्पष्ट किया कि सिर्फ इसलिए कि कोई महिला गोद लेने या सरोगेसी के माध्यम से मां बनी है, उसे मातृत्व लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता। नवजात शिशु को उसकी मां की देखभाल की जरूरत होती है और यह समय बच्चे के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के B.शाह बनाम प्रीसाइडिंग ऑफिसर, लेबर कोर्ट (1977) और लक्ष्मीकांत पांडे बनाम भारत संघ (1984) के फैसलों के साथ-साथ मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) और महिलाओं के साथ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) का भी उल्लेख किया। अंततः कोर्ट ने निर्णय दिया कि याचिकाकर्ता 1972 नियमों के तहत 180 दिन की गोद लेने की छुट्टी की अधिकारी हैं। चूंकि उन्हें मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 के तहत पहले ही 84 दिन की छुट्टी मिल चुकी थी, इसलिए शेष को समायोजित किया जाए। केस टाइटल: लता गोयल बनाम भारत संघ एवं अन्य

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