हस्तनिर्मित राखियों से आत्मनिर्भरता की ओर मैनपुर की महिलाएं धान, रेशम के धागे, चावल, मोति और उम्मीदों से बुनी राखियाँ

Women of Mainpur move towards self-reliance with handmade rakhis. Rakhis are woven from paddy, silk thread, rice, pearls and hopes.

मैनपुर/रूपेश साहू – जिले के मैनपुर विकासखंड के अमलीपदर संकुल की स्व-सहायता समूह की महिलाएं रक्षाबंधन पर्व को आजीविका से जोड़कर अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन रही हैं। इन समूह की दीदियों द्वारा रेशम के धागे, धान, चावल, मूंग, मोती एवं अन्य सजावटी सामग्रियों का उपयोग कर हस्तनिर्मित पर्यावरण-सुरक्षित राखियों का निर्माण किया जा रहा है। यह कार्य न केवल पारंपरिक कला को जीवित रखता है, बल्कि महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त भी बना रहा है। रक्षाबंधन के अवसर पर इन राखियों की स्थानीय बाजार में मांग तेजी से बढ़ी है।

राखी की बिक्री स्थानीय स्तर पर स्वयं समूह की महिलाओं द्वारा ही की जा रही है। इसके अलावा, यह राखियाँ महिलाओं द्वारा संचालित दुकानों में भी बिक्री के लिए रखी गई हैं। इससे महिलाओं को न केवल अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो रही है, बल्कि उनमें सामूहिक प्रयास, रचनात्मकता और आत्मसम्मान की भावना भी विकसित हो रही है। रक्षासूत्र अब केवल प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक नहीं, बल्कि गांव की महिलाओं की मेहनत और सफलता भी बन चुकी है

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