अमानक दवाइयों और खाद की बिक्री, बिल भी नहीं दे रहे संचालक,कृषि विभाग की चुप्पी से किसान परेशान:सुरजपुर
Sale of substandard medicines and fertilizers, operators are not even giving bills, farmers are upset due to the silence of the Agriculture Department: Surajpur

*कृषि केंद्रों की मनमानी, किसानों को नकली खाद-दवाइयों का झटका
सूरजपुर कौशलेन्द्र यादव । खेती-किसानी का दौर जोरों पर है, लेकिन कृषि केंद्रों की मनमानी ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जिले में संचालित कृषि केंद्रों पर अमानक स्तर की कीटनाशक दवाइयां और खाद बेचे जाने की शिकायतें सामने आ रही हैं। किसानों का कहना है कि इन दवाइयों और खाद का फसलों पर कोई असर नहीं हो रहा है। इसके बावजूद संचालक ऊंची कीमतों पर सामान बेच रहे हैं और बिल देने से भी कतरा रहे हैं। कृषि विभाग की उदासीनता के चलते यह धांधली बेरोकटोक जारी है। बहरहाल किसानों की मेहनत पर पानी फिर रहा है और कृषि विभाग की उदासीनता उनकी मुश्किलें बढ़ा रही है। सवाल यह है कि आखिर कब तक किसान इस ठगी का शिकार होते रहेंगे?
बिना डिग्री के चल रही दुकानें
केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार, कीटनाशक बेचने के लिए बीएससी की डिग्री अनिवार्य है, लेकिन जिले में अधिकांश कृषि केंद्र दसवीं पास या उससे भी कम पढ़े-लिखे संचालक चला रहे हैं। लाइसेंस धारियों की जानकारी ऑनलाइन होने के बावजूद, कृषि विभाग की मिलीभगत से नकली कीटनाशक और बीज बिक रहे हैं। इससे किसान ठगी का शिकार हो रहे हैं।
कालाबाजारी और बिल की कमी
कृषि केंद्रों पर न केवल अमानक सामान बेचा जा रहा है, बल्कि जीएसटी वाला ओरिजिनल बिल भी नहीं दिया जा रहा। खाद की कालाबाजारी भी चरम पर है। किराना दुकानों से लेकर कृषि केंद्रों तक खाद का स्टॉक भरा पड़ा है, लेकिन सहकारी समितियों में किसानों को पर्याप्त खाद नहीं मिल रहा। मजबूरी में किसान निजी दुकानों से महंगे दामों पर खाद खरीद रहे हैं।फ
फसल ग्रोथ दवाइयों का नाकाम असर
किसानों का कहना है कि फसलों की ग्रोथ के लिए खरीदी गई दवाइयां बेअसर साबित हो रही हैं। विभिन्न कंपनियों की दवाइयां बिक रही हैं, लेकिन इनके प्रभाव की कोई गारंटी नहीं है। किसान दवाइयों का छिड़काव कर रहे हैं, पर फसलों में कोई सुधार नहीं दिख रहा, जिससे उनकी मेहनत और पैसा दोनों बर्बाद हो रहे हैं।
कृषि विभाग की चुप्पी
कृषि विभाग के अधिकारियों की लापरवाही इस समस्या को और गंभीर बना रही है। हर साल खाद और दवाइयों के सैंपल लिए जाते हैं, लेकिन जांच की प्रक्रिया कागजों तक सिमट कर रह जाती है। जब इस मामले में जिम्मेदार अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन तक रिसीव नहीं किया।